विगलित करुणा
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भारतवर्ष की अधुना बिहार की पटभूमि जहा स्थित थी इतिहास की सर्बस्रेष्ठ बिश्वविद्यालय नालंदा महाबिहार ... जिसकी गौरवगाथा आज भी स्वर्णाक्षर में लिखे जाते है ... आज भी उस भग्न्स्तूप पे अगर कान राखी जाएँ तो पुराकाल बातें करते है ... वोह युग तो बीत गए जब इसी बिश्वविद्यालय की इमारतें देश-विदेश से आई हुई छात्राओ की अध्यायन से गूंज उठते थे ... आज भी यहाँ की हवाओ में श्री गौतम बुद्ध की वाणी महेकती है ...
यह उस समय की बात है जब नालंदा महाबिहार विश्व के विख्यात सिक्षास्थल में से उची छोटी में विराजमान थे .. जो छात्राए यहाँ पढ़ने आते थे वोह अपने आपको धन्य समझते थे ... नालंदा महाबिहार की शिक्षक मण्डली तथा प्रधान अध्यक्ष शीलभद्र की कड़ी निगरानी में यहाँ के छात्राए श्रेष्ट शिक्षा प्राप्त होते थे जिससे आगे चलकर वे केवल अच्छे और सर्बज्ञ ज्ञानी ही नही साधना प्राप्त श्रेष्ट तथा पूज्य सन्यासी के रूप में भी परिचित होते थे ..
येही महाबिहार में पढ़ने आए काशी से अनंत नाम के एक छात्र ... अनंत के पिता काशी के एक निष्ठावान ब्रह्मण है .. अनंत के पिता की इच्छा थी उनके पुत्र भी उनके तरह ब्रह्मण उपाधि प्राप्त हो .. परन्तु अनंत ने बौद्ध धर्म और गौतम बुद्ध के नीति को अपनाया .. अनंत को यह शिक्षा अपने माता सुनेत्रा से प्राप्त हुई . बचपन से अनंत के माता ने उसको येही शिक्षा दी है के उच्च-नीच में कोई भेद नही होते , सभी मनुष्य आदरणीय और स्वं भगवान् के स्वरुप है .. किसीको घृणा मत करो .. मनुष्य रूप में ही भगवान् पूजे जाते है .. अनंत ने अपनी माता की आदेश को मानकर इस महाबिहार में प्रवेश की .. यह महाबिहार अनंत के लिए केवल शिक्षास्थल ही नही सर्बप्रकार से आदर्श रूप में अपने आपको स्थापित करने का माध्यम भी है ...
दो वर्ष बीत चुके है अनंत को यहाँ आए हुए ... बौद्ध धर्म को अपनाकर मुंडित मस्तक , नारंगी भेस कौपीन धारी अनंत अपने ध्यान , ज्ञान और कर्म निछावर करने में लीन है भगवन बुद्ध के चरणों में .. नालंदा महाबिहार के रीति-नीति वोह सकुशल अपना चुके है ... यहाँ के सभी छात्राए प्रातः चार प्रहर को उठकर महाबिहार के प्रांत्स्थल में स्थित भगवन तथागत के मूर्ति सम्मुख प्रार्थना करते है .. अतः प्रारंभ होते है उनके दिन .. यहाँ हर प्रहर में एक एक विषय की अध्यायन चलते है .. जिनमे से संस्कृत , पाली तथा अन्य विषय में अर्थशास्त्र , गणित , तर्कशास्त्र, चिकित्साशास्त्र , बिज्ञान , कला और बौद्ध धर्मग्रंथ विनयपिटक , सुत्तपिटक और अभिधार्मपिटक पाठ सभी के लिए अनिवार्य है .. पाठ शेष दोपहर के भोजन भोजन उपरांत प्रार्थना और शायांकाल में पुनः पाठ में मननिवेश करना अंत में रात के भोजन पश्चात प्रार्थना यहाँ की दैनिक नियम है .. अनंत भी बाकि छात्राओ की न्याय इसी नियम से अभ्यस्त हो चुके है ...
परन्तु कुछ दिनों से यह क्या हो रहा है अनंत के साथ ! क्यूँ उसका मन इतना विचलित है ! जो इच्छा पूर्ति हेतु अनंत इस महाबिहार में आए थे वोही तो हो रहा है ... बौद्ध धर्म का सेवा करना , उनके अनुशासन को मान्यता देना , श्रद्धा पूर्वक उनका पालन करना
- येही तो चाहता था अनंत और येही तो हो रहा है .. तो उसका मन पाठ में निवेश क्यूँ नही है ! आज पाठ्काल धर्माचार्य के कही गयी कथन उसके कानो में क्यूँ प्रवेश नही कर रहे है ! धर्माचार्य उसे एकबार सावधान भी कर चुके उसके इस मननिवेश ना करने की कारण .. परन्तु आज अनंत अपने मन को शांत नही कर पा रहा है ... अध्याय की एक भी चरण में मननिवेश नही कर पा रहा ..
इसके कारण क्या प्रातः में हुई महाबिहार के प्रांगन की घटना है ! जो अनंत के मन में बार बार आघात कर रहे है ! जो अनंत अपनी माता की आज्ञा की पालन हेतु इस बिहार में आए थे क्या आज उसकी माता की कही गयी कथन के अन्यथा होता हुआ प्रतीत हो रहा है !
आज प्रातः में घटी घटना कुछ इस प्रकार है :
नालंदा महाबिहार के सम्मुख उन्मुक्त भूमि के पश्चात एक घना जंगल है .. जंगल के उस पार आदि भील जाती के लोगो की वास है ... वोह आदिम प्रकृति के है .. बर्बर , शिकारी है .. इस जाती के राजा मांडू बोहत उग्र और युद्ध प्रिय है ... इस भील जाती के साथ बिहार की कोई सम्बन्ध नही है .. दोनों गोष्ठी अपने आपको एक दुसरे से पृथक रखते है और दूर रहना ही पसंद करते है ... किन्तु आज कुछ दिनों से बिहार के प्रांगन में कोई बाहर से ही पुष्प , फल वगेरा रख के चले जाते है ... यह तो निश्चित है के भील जाती के ही कोई यह कार्य कर रहे है ... आश्चर्य की बात यह है जो भील जाती एक प्रकार से बौद्ध धर्म को घृणा करते है , बौद्ध भिक्षुओ को भिखारी कहकर अपमानित करते है उनमे से कौन ऐसा होगा जो इस प्रकार रोज़ भगवन बुद्ध के लिए पुष्प और फल भेट कर रहे है !
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आज प्रातः में घटी घटना कुछ इस प्रकार है :
नालंदा महाबिहार के सम्मुख उन्मुक्त भूमि के पश्चात एक घना जंगल है .. जंगल के उस पार आदि भील जाती के लोगो की वास है ... वोह आदिम प्रकृति के है .. बर्बर , शिकारी है .. इस जाती के राजा मांडू बोहत उग्र और युद्ध प्रिय है ... इस भील जाती के साथ बिहार की कोई सम्बन्ध नही है .. दोनों गोष्ठी अपने आपको एक दुसरे से पृथक रखते है और दूर रहना ही पसंद करते है ... किन्तु आज कुछ दिनों से बिहार के प्रांगन में कोई बाहर से ही पुष्प , फल वगेरा रख के चले जाते है ... यह तो निश्चित है के भील जाती के ही कोई यह कार्य कर रहे है ... आश्चर्य की बात यह है जो भील जाती एक प्रकार से बौद्ध धर्म को घृणा करते है , बौद्ध भिक्षुओ को भिखारी कहकर अपमानित करते है उनमे से कौन ऐसा होगा जो इस प्रकार रोज़ भगवन बुद्ध के लिए पुष्प और फल भेट कर रहे है !
सभी छात्राओ की तरह अनंत के मन भी कौतुहल वश यह जानने को ततपर है .. परन्तु अनंत ने वोह किया जो और कोई छात्र ने करने की दुह्सहस नही की ... आज प्रातः सबसे पहले उठकर अनंत बिहार के प्राकार प्रांगन में उपस्थित हुआ .. सूर्य देव के उदय तब निकट थे .. अर्ध अन्धकार में अनंत जा कर पास स्थित एक वट ब्रिक्ष के पीछे आश्रय लिया .. कुछ समय बाद अचानक वहा से किसीके नुपुर की ध्वनि सुनाई दी ... अनंत ततपर हो उठा .. अंधकार में जब उसे यह प्रतीत हुआ कोई धुंदला सा चेहरा प्रांगन के सामने आ रहे है वोह उस ओढ़ दौर परा और सीधे जा कर उस चेहरे के सामने खड़ा हो गया ...
अरे ! यह क्या ! एक क्षण के लिए अस्चर्यचकित हो गया अनंत .. यह तो एक बालिका है .. कोई सोलह या सतरा बर्षीय आयु होगी , कृष्ण वरण , हरिणी जैसे चकित दृष्टि डालकर वोह कन्या कुछ दूर हट गयी , चेहरा भयभीत , मुह से एक चीख निकली .. उसी चीख से विद्यालय के बाकि छात्राए और आचार्यगन प्रांगन में उपस्थित हो गए ... सभी के दृष्टि उस कन्या पर पड़ी .. आचार्य दंडपानी ने पुछा -
'कौन हो तुम बालिके ! यहाँ किस प्रयोजन से आई हो !'
बालिका डर गयी थी .. फिर भी उत्तर दिया -
'मैं भील जाती से हूँ आचार्य , यहाँ आप सबको प्रार्थनाय करते हुए रोज़ देखती हूँ मैं . मेरा भी मन करता है मैं इस प्रार्थना में सम्मिलित हूँ , और '
उसके बात समाप्त नही करने दिया आचार्य शीलभद्र . उनके वज्रागर्व आवाज़ टूट पड़े बिहार में
'तुम्हारी दुह्साहस देख के मैं चकित हूँ बालिका , नारी वर्जित इस बिहार में प्रवेश की चिंता तुमने कैसे कर ली ! , वोह भी नीच भील संप्रदाय की कन्या हो कर , आगे कुछ मत कहना , इसी समय यहाँ से प्रस्थान करो और आगे इस बिहार के आस-पास ना दिखाई देना'..
भील कन्या दुखित हो कर कहने की चेष्टा की के
'प्रभु मैं आपके इस बिहार और इसके देवता की पूजा हेतु कुछ सामग्री लायी हूँ अगर आपकी दया हो तो ... '
शीलभद्र - 'बस कन्या ! तुम्हारी धृष्टता मुझे अचंबित कर रहे है . अभी भी नही गई तुम !'
भील कन्या एक बार सबकी ओढ़ ग्लानिपुर्व देख कर पीछे मूडी प्रस्थान के लिए ..
प्रधान अध्यक्ष शीलभद्र ने तत्पश्चात सबको आदेश दिए वोह सब प्रार्थना स्थल पर सम्मिलित हो और अनंत को कहा उनसे आके रात्री के भोजन उपरांत मिले ..
तब से पूरा दिन अनंत बेचैन है .. प्रधानाचार्य क्या कहेंगे यह सोच कर नही .. अनंत भूल नही पा रहा है वोह भयभीत दो आंखें , उस बालिका की करुण अर्ति जो केवल एक बार भगवन बुद्ध के दर्शन हेतु आई थी ... अनंत समझ नही पा रहा है भगवन तथागत ने ही तो कहा है अपने वाणी में के उच्च-नीच में भेद न करो .. तो यह भेद-भाव क्यूँ ! वोह कन्या तो केवल भगवन के आगे पुष्प चढ़ाने आई थी .. उसे अनुमति क्यूँ नही मिली ! क्या इसलिए के यह आश्रम नारी वर्जित है .. सारे भिक्षु यहाँ सन्यासी है .. सन्यास धर्म क्या यह शिक्षा देते है के नारी- पुरुष में भेद करो ! अनंत को इन सारे प्रश्नों के उत्तर कौन देंगे ! .. किसके पास है इनके उत्तर !
प्रधानाचार्य शीलभद्र !

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रात्री काल .. आचार्य शीलभद्र ने कुछ क्षण पहले ही भोजन समाप्त की , भोजन समाप्त पश्चात वोह प्रार्थना में सम्मिलित होने के लिए प्रस्तुति ले रहे थे .. तभी अनंत ने कक्षा में प्रवेश किया .. आचार्य शीलभद्र की कक्षा बाहुल्य वर्जित केवल कुछ पुराने पुस्तक और एक कोणे में घी का दिया जल रहे थे .. आचार्य ने अनंत को इशारे करके बैठने को कहा .. अनंत आचार्य को प्रनामपुर्वक उनके सम्मुख आसन ग्रहण किया ..
शीलभद्र : 'आज प्रातः जो हुआ वोह अनभिप्रेत थी , परन्तु अनंत तुम्हे सावधान रहना चाहिए .. तुम्हे अपनी परिवार की गरिमा खंडित नही करना चाहिए .. उछ्वंशीय हो तुम .. क्या इस प्रकार किसी भील बालिका के सम्मुख तुम्हारी उपस्थिति शोभा देते है !'
अनंत मस्तक नीचे किये बैठा था .. शीलभद्र के ब्यक्तित्व के आगे किसीकी नही चलती .. अखंड ज्ञानी है वोह .. इस नालंदा महाबिहार के एकनिष्ठ सेवक है वोह ... इस विश्वविद्यालय में नियमों का उलंघन वोह आज तक ना होने दिए और ना देंगे ...
प्रधानाचार्य कहने लगे : 'अनंत मैं समझता हु , तुम्हारी आयु अधिक नही है .. केवल वीश बर्षीय आयु में उचित-अनुचित के ज्ञान तुम से अधिक अपेक्षा नही करता हु मैं .. परन्तु तुमने अभी सन्यास धर्म लिए है .. इसके आदर और सम्मान करना सीखो वत्स '
अनंत ने अब उत्तर देना उचित समझा ..
' प्रधानाचार्य मेरी धृष्टता क्षमा कीजिए .. परन्तु मैं कौतुहलवश हो गया था .. हमारे धर्म में नारी बिहार में वर्जित है ऐसा मैं मान नही पा रहा हु '
शीलभद्र गंभीर दृष्टि निखेप किये अनंत पर .. अंत कहे -
'अनंत एक सन्यासी को अपना कर्म और धर्म भूलना नही चाहिए , सन्यास धर्म में संयम अति आबश्यक है ... तुम्हे इसका पालन सर्वदा करना चाहिए .. यह भूलो मत वत्स इस बिहार के अनुसाशन और नियमों के उलंघन मैं क्षमा नही करूँगा ... जो इसके अन्यथा करेगा उसको यह बिहार त्याग करना पड़ेगा .. अब तुम जा सकते हो '...
अनंत बस सुनता रह गया , जो प्रश्नों के जाल में वोह उलझता जा रहा था वोह अब अंतहीन प्रश्नों पर्वत समान अनंत के मन में आघात हान रहे है .. वोह उठ पड़ा और प्रार्थना कक्ष के ओढ़ प्रस्थान किये .. उसके प्रार्थना अधुरा रहा .. आज बोहत दिनों बाद अनंत को अपनी माता की याद आई .. इस समय माता ही उसे उचित दिशा दिखा पाते थे .. परन्तु वोह अनंत से बोहत दूर है .. रात को निद्रा समय अनंत ने ब्याकुलता से माँ को बुलाया -
'माँ कहा हो आप !'
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अगले दिन अनंत को उठने में देर हो गई .. पूरी रात ठीक से सो नही पाया वोह ... प्रार्थना
की समय से पूर्व बाकि छात्रों की वार्तालाप की ध्वनि से अनंत चकित हो उठ प्रस्तुत हो रहा
था ता की प्रधानाचार्य उसके देर देख कर क्रोधित ना हो जाए .. इसी समय प्रांगनस्थल से
कुछ गुंजन सुनाई दी .. धीरे धीरे यह गुंजन आचार्य शीलभद्र के चीत्कार में परिवर्तीत हो
उठा .. अनंत बाहर आकर देखा कल की वोह बालिका आज भी उपस्थित हुई है हाथ में फूल
लेकर .. प्रधानाचार्य उसे देख कर अपने क्रोध को वश नही कर पाए और उस कन्या को कटु
वाक्य से तिरस्कृत कर रहे है .. वो बालिका केवल अश्रुपुर्वक दृष्टि से आचार्य से विनती कर
रही थी एकबार उसे भगवन तथागत के दर्शन हेतु अनुमति प्रदान करे .. परन्तु आज भी
उसे लौटना पड़ा .. ब्यथित ह्रदय से उसने प्रस्थान की और ततोधिक ब्यथित चित्त से
अनंत उसके प्रस्थान की ओढ़ देखता रहा .....
अन्य दिन की न्याय पठन सुरु हुआ .. अनंत का मन कुछ नही सुन रहा था .. उसका मन
विद्रोह कर रहा था इस नियम के विरुद्ध .. यह कैसा नियम है जो एक साधारण कन्या को
भगवन के पूजा की अनुमति प्रदान नही कर सकता ! अनंत ने स्थिर कर लिया और नही ..
अब वो इस बालिका को अपमानित नही होने देंगे .. परन्तु प्रधानाचार्य शीलभद्र की आदेश
! कैसे उल्लंघन करे उनका कथन ! नही नही इस बिहार से शिक्षा प्राप्त करना अनंत का
सपना है , उसके माता की एकमात्र इच्छा है , जिसका पूर्ति अनंत को करना है .. अनंत को
एक समय उस बालिका पर क्रोध आया .. कैसी कन्या है यह ! इतनी अपमान सहकर भी
क्यूँ बार बार चली आती है ! क्या यह नीच-छोटे-बर्बर भील जाती के लोग ऐसे ही होते है !
यह क्या सोच रहा है अनंत ! उसने अपने आपको धिक्कारा .. अपने मन में यह सोच आने
कैसे दिया के भील संप्रदाय नीच या बर्बर होते है ! नही नही कल ही कुछ करेगा अनंत ..
पाठ कक्षा में उसके ध्यान तब आया जब आचार्य सुकृत ने उसको अमनोयोगी होने की हेतु
धिक्कारा .... अनंत ने एक बार और पाठ में ध्यान केंद्रीत करने की चेष्टा की ...
5
घना बनभूमि , आम्र , पीपल , वट कही प्रकार की पेड़-पौधों से सुसज्जित चारोधार ...
साथ में बिभिन्य प्रकार की पुष्प से रचित भूमि तथा पुष्प के डालि .. अनंत तो कही के
नाम से भी अवगत नही है .. एक पीपल पेड़ के नीचे वोह प्रतीक्षा कर रहा था .. अनंत
जानता है इसी रास्ते से यह भील बालिका बिहार की ओढ़ जाती है ..
उसका अनुमान सत्य था .. कुछ समय पश्चात वोह कन्या दूर बन से प्रतीत हुई .. अनंत ने और अपेक्षा करना उचित नही समझा .. उसने आवाज़ दिया
' सुनो बालिके !'
एक क्षण के लिए वोह कन्या चौक उठी .. पीछे मुडके जब अनंत को देखा पहले भयभीत हो उठी .. अनंत ने उसे अभय दिया ..
'डरो मत , मुझे तुमसे वार्तालाप करना है , यहाँ मेरे सम्मुख आओ'
उसने अनंत के आदेश के पालन हेतु सामने आई और अनंत को ततोधिक चमत्कृत करके
अनंत को प्रणाम की .. अनंत आस्चर्य हो गया यह सोच कर भील बालिका यह सिष्ठाचार
सीखी कहा से !
हसकर अनंत ने उस कन्या से पुछा - 'यह प्रणाम की रीती कहा से सीखी ?'
बालिका ने उत्तर दी - ' प्रभु मैं आप सबकी गति-विधिया से अवगत हूँ .. मैंने देखा आप
सब अपने आचार्य को इसी प्रकार से प्रणाम करते है .. उचित है ना !'
अनंत इस भील कन्या की सहज-सरलता से प्रसन्न हुआ ... परन्तु समय नष्ट ना किये
सीधे प्रश्न किया -
' महाबिहार के आचार्य सभी तुम्हे इतना तिरस्कृत करते है ... फिर भी बार बार तुम वहा
क्यूँ जाती हो कन्या ? '
भील कन्या दुखी हो उठी और कहा - ' प्रभु , मुझे बिहार की संगीत , अनुशासन और नियम
अछे लगते है , मैं भी आप सबकी न्याय आपके भगवन की पूजा करना चाहती हूँ .. परन्तु
मुझे यह ज्ञात नही है आपकी भगवन की पूजा कैसे की जाती है ! आप मुझे सिखायेंगे पूजा की आचार प्रभु ? '
अनंत दुविधा में पढ़ गया .. यह किस कार्य की भार उस पर सौप रही है यह कन्या ! अनंत
मन में भगवन को याद किया ' हे तथागत क्या करवाना चाहते है आप मुझसे ! क्या इच्छा
है आपकी ! मैं तो इसे समझाने आया था के वोह और महाबिहार ना जाये .. परन्तु यह तो
आपकी पूजा की निश्चय कर चुकी है !'
अनंत ने कहा ' सुनो कन्या मैं स्वं इस बिहार की छात्र हूँ , और यह क्या तुम मुझे प्रभु
संबोधित कर रहे हो ! .. मैं एक सामान्य मनुष्य हूँ '
भील कन्या ने सरलतापूर्वक कहा - ' तो आपको क्या कहके संबोधित करू प्रभु !'
अनंत इस कन्या की भोलेपन से हस उठा ..
उसे हस्ते हुए देख बालिका ने कहा - ' तो ठीक है आपको आचार्य कहूँगी .. आप मुझे
आपके भगवन की पूजा की रीति सिखायेंगे तो इसी प्रकार से आप मेरे गुरु हुए और मैं आपकी शिष्या .. है ना आचार्य !'
अनंत चुप हो गया .. वोह समझ नही पा रहा था कैसे इस बालिका को निवृत करे ..
महाबिहार से प्रार्थना की ध्वनि सुनाई दे रही थी .. अनंत और बिलम्ब करना उचित नही
समझा ... उसने भील कन्या से कहा -
'कल इसी समय यहाँ उपस्थित होना .. मैं तुम्हे पूजा की रीति सिखा दूंगा .. परन्तु मेरी
एक शर्त है .. पूजा की रीति सिखने की पश्चात तुम बिहार की ओढ़ और नही जाओगे ..
बोलो सहमत हो !'
बालिका की चेहरा अनाबील आनंद से भर उठा .. सहस्यपुर्वक कहा 'जो आज्ञा प्रभु .. नही नही आचार्य '.
वोह ख़ुशी से उछलते हुए बन की ओढ़ प्रस्थान की ... तभी पीछे से अनंत ने आवाज़ दी - '
कन्या तुम्हारी नाम तो बताती जाओ !'
भील बालिका चलते चलते ही उत्तर दी - ' कौशाम्बी '
अनंत भी महाबिहार की ओढ़ प्रस्थान करने लगा .. मन में यह नाम दौराता रहा -
' कौशाम्बी , कौशाम्बी '.........
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दिन की उज्वलता चारो दिशा में चमक रहे थे .. प्रार्थना समाप्त करके अनंत ने बिलम्ब नही किया .. वनभूमि की ओढ़ प्रस्थान की ... आज ही शेष दिन .. अनंत ने मन में निश्चय कर लिया था कौशाम्बी को उसके इच्छा अनुसार भगवन तथागत के पूजा रीति सीखाकर अपना कार्य समाप्त करेगा .. अनंत को यह भूलना नही चाहिए वोह एक ब्रम्हचर्य पालनकारी सन्यासी है .. यूँ किसी कन्या से एकांत में वार्तालाप उसके चरित्र विरूद्ध है .. इससे उसपर और उस भील कन्या पर लांछन लग सकते है ....
दूर झाड़ी से अनंत कौशाम्बी को आगे आते देखे .. आज कौशाम्बी ने नूतन वस्त्र पहने .. प्रतीत होता है कुछ क्षण पहले ही स्नान करके आई है क्यूंकि उसके बाल भीगे हुए थे .. हाथ में उसके पुष्प थे ....
सामने आते ही भील कन्या ने छद्म क्रोध दिखाए - '' इतने बिलम्ब क्यूँ आचार्य ! मुझे भय हुआ आप ना आए तो ! ''
अनंत शांतपुर्वक कहा '' कैसे ना आते ! अपने शिष्या को पूजा रीति से अवगत जो करना था ! ''
अनंत की वाक्य समाप्त नही होने दिया कौशाम्बी और अपने हाथो के पुष्प अनंत के चरणों तले डाल दी ... अनंत चरम आश्चर्यता से पुष्प की ओढ़ देखता रह गया - '' यह क्या किया कौशाम्बी ! मुझे फूल क्यूँ अर्पित की ! ''
कौशाम्बी हसती रही ..
कहा - '' भगवन की पूजा के पहले गुरु की वंदना की आचार्य '' ...
अनंत इस भील बालिका से जितना परिचित हो रहा था उतना इस बालिका की सहजशीलता , और भक्ति से आकृष्ट हो रहा था .. अंतता अनंत ने कहा - '' सारे पुष्प मुझे अर्पित की कौशाम्बी .. भगवन तथागत की पूजा के लिए पुष्प तो नही रहे ! ''
स्मित दृष्टि से कौशाम्बी ने कहा - '' इसके चिंता ना कीजिये आचार्य .. मैं और पुष्प चयन करके आपके सम्मुख उपस्थित होती हूँ ''...
अंत में प्रारंभ हुआ गुरु के पूजा रीति और शिष्या की शिक्षा .. एक उची बेदी पर बैठे अनंत पूजा की प्रत्येक विधि कौशाम्बी को विस्तारपूर्वक ब्याख्या दे रहे थे और बाध्य शिष्या की न्याय कौशाम्बी इन सारे रीतियो को समझ रही थी ..
समय कब बीत गया गुरु और शिष्या में से किसीको इसका आभास नही हुआ ... जब सूर्यदेव पश्चिम की ओढ़ ढलने लगे तब दोनों को ज्ञात हुआ .. अनंत प्रस्थान हेतु उठ पड़ा .. कौशाम्बी ने अनुरोध किया - '' कल प्रातः मेरी पूजा रीति एकबार देखने आएंगे ना आचार्य ! मैं प्रतीक्षा करुँगी '' .
अनंत ने कोई उत्तर नही दिया परन्तु मन में यह निश्चय कर लिया था आज ही गुरु-शिष्या के यह परंपरा समाप्त होगी ...
जाते समय कौशाम्बी ने अपने गुरु को श्रद्धापूर्वक प्रणाम की ... अनंत उसके माथे पर हाथ रख कर अस्फुट से उच्चारण की -
'' बुद्धं शरणं गछ्यामी ''....
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मनुष्य के इच्छा अनुसार सब गतिविधिया पूर्ण होता तो विधि की विधान की प्रयोजन नही होता ..
सम्पूर्ण रात अनंत स्वं से युद्ध करता रहा .. अपने मन को आश्वाशन दिए जो उसे सिखाना था और कौशाम्बी को सीखना था वोह कार्य सम्पूर्ण हो चुके है .. अब अनंत को जाने की कोई आबश्यकता नही है .... दो दिन वोह महाबिहार से बाहर रहा .. आचार्यगण अनंत से अत्यंत अप्रसन्य है ... प्रधानाचार्य शीलभद्र ने उसे एक बार सावधान भी कर चुके है ... अनंत एक भील कन्या के लिए अपना भबिश्य संकटमय नही कर सकता !
आज रात को निद्रा समय उसके मित्र सुप्रकाश ने जो कहा वोह सुन कर अनंत का मन अधिक बैठ गया ....
आज सुप्रकाश ने बिहार की एक अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र की कहानी सुनाया ..... नालंदा महाबिहार की एक गौरवमय भविष्य के रूप में उसे देखा जाता था .. अवध नगरी से आया था यह छात्र नाम था तिश्व ..... प्रधानाचार्य के प्रिय छात्र थे तिश्व ... सब इस बात पर निश्चित थे के आगे चलकर नालंदा महाबिहार तथा बौद्ध धर्म की गरिमा वृद्धि करेगा तिश्व ...
परन्तु विधि ने कुछ और स्थिर किया था तिश्व के लिए ... उस वर्ष तिश्व बिहार से अवकाश लेकर अवध गया अपने माता-पिता से मिलने .... वहा जा कर वोह हुआ जो किसीने धारणा नही की .... तिश्व बिहार के अवकाश के पश्चात लौट कर नही आया ... सभी आचार्य सहित छात्राए चिंतित हो उठे ... स्वं प्रधानाचार्य शीलभद्र एक शिष्य को अवध भेजे तिश्व का संबाद लाने के लिए ...
उस शिष्य ने आकर जो कहा वोह सबको हैरान कर दिया .... उस शिष्य ने कहा तिश्व अपने माता-पिता से साक्षात् हेतु घर गया .. उसके माता-पिता की देखभाल के लिए एक दासी थी घर में ... तिश्व के आने के कुछ दिन पूर्व वोह दासी अस्वस्थ हो गई .. तब उसके पुत्री रोही तिश्व के माता-पिता की सेवा करने लगी ..... धीरे धीरे तिश्व और रोही में मित्रता हुई .. तिश्व के माता को यह ठीक नही लगा ... उन्होने रोही को उनके घर आने से मना कर दिया ... इससे तिश्व ब्यथित हुआ और अपने माता से अनुरोध किया रोही को पुनः नियुक्त किया जाए .. परन्तु उसके माता ने तिश्व और रोही दोनों को मंद वाक्य सुनाए .. येही नही उन्होंने रोही की माता को भी अपमानित किया .... धीरे धीरे तिश्व और रोही की मित्रता पुरे अवध में प्रचारित हो गई ... एक बौद्ध सन्यासी और एक दासी पुत्री की प्रेम कथा की निंदा से समग्र अवध मुखरित हो उठे ... रोही यह अपमान सह ना सकी और विष पान करके आत्महत्या की .. और तत्पश्चात
तिश्व कहा चले गए यह किसीको ज्ञात नही है .....
यह घटना से अनंत का ह्रदय और थम गया .... क्या येही परिनीति उसके साथ भी अनिवार्य है ! नही उसे इसी क्षण कौशाम्बी को त्यागना होगा .... अब से केवल पाठ में ध्यान केन्द्रित करेगा अनंत .... येही उसका द्रढ़ निश्चय है ....
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सारे दंद अपने मन में दबाकर अनंत आज प्रस्थान कर रहा है .. उसने अब निश्चय कर लिया आज ही शेष वोह कौशाम्बी से बात करेगा ... नियम अनुसार पूजा की विधि उसने सिखा दिया ... अब और नही ..
बन में पहुचकर कौशाम्बी को ढूंडता रहा अनंत ... कहा गयी कौशाम्बी ! अन्य दिन तो उसके आने से पूर्व आ जाती है ! अचानक अनंत अपने पेड़ो में कोई स्पर्श अनुभव किया ... मूड कर देखा तो कौशाम्बी कुछ पुष्प समेत उसे प्रणाम कर रही थी ... परन्तु अनंत आज आशीर्वाद करने की अवस्था में नही थे ..
उसने केवल अपना हाथ कौशाम्बी के माथे पर रखा ..
कौशाम्बी अनंत के चिंताजनक चेहरे को देख कर समझ गयी थी कुछ हुआ है परन्तु बिना कुछ पूछे उसने एक मिट्टी के दीये अनंत के सामने रख दी .. अनंत अस्चार्यता से पुछा "यह क्या है ! "
कौशाम्बी ने थोड़ी हसकर उत्तर दिया " गुरु दक्षिणा आचार्य .. आपने जो पूजा विधि मुझे सिखाई उसके लिए आपको गुरु दक्षिणा प्रदान करना मेरा कर्त्तव्य बनता है आचार्य "..
अनंत मुग्ध हो गया इस भील कन्या की गुरु भक्ति से ... उसने प्रसन्नता हेतु कहा " पगली कहीं की "
..
बस और विलंब नही ... अनंत ने अपने मन को प्रस्तुत कर लिया ... फिर कहा " कौशाम्बी , मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो "...
अनंत की बात समाप्त नही हुई पीछे से किसीके पदध्वनि सुनाई दी ... कौशाम्बी उस ओढ़ देख कर चौक उठी .. उसके दृष्टि को अनुसरण करते हुए अनंत ने देखा उसके पीछे आचार्य शीलभद्र समेत अन्य आचार्यागन उपस्थित है .... अनंत को कुछ कहने का अवकाश न देते हुए प्रधानाचार्य ने आदेश दी " अनंत , बिहार की ओढ़ गमन करो , और तुम बालिके इसी समय यहाँ से प्रस्थान करो ''...
" क्यूँ प्रस्थान करे वोह ! ''
सबके दृष्टि एकसाथ उस प्रश्नकर्ता की ओढ़ केन्द्रित हुई ... और देखा बन के प्रान्त भील राज मांडू अपने कुछ भील योद्धाओ के साथ उपस्थित हुए है ...
मांडू राज ने अतः कहा '' आचार्य शीलभद्र , प्रतीत होता है अधिक आयु के हेतु तुम्हारे बुद्धि भ्रष्ट हो चुके है ... तुम मेरे ही प्रजा की कन्या से जाने के लिए कह रहे हो वोह भी मेरे ही राज्य के सीमा पर खड़े हुए ! ''
'' सीमा मेरे और तुम्हारे नही होते भील राज ... शीलभद्र ने कहा '' इस बालिका ने धृष्टता की .. बिना अनुमति के हमारे महाबिहार में प्रवेश की चेष्टा की ... और अब हमारे छात्र को बाध्य किया यहाँ आने के लिए .. उसे जाना ही चाहिए ''
'' बस आचार्य , अपना यह ज्ञान अपने शिष्य तक ही सीमित रखो '' ... मांडू क्रोधित होकर कहे '' तुम्हारे यह शिष्य कोई शिशु नही है के किसीके बुलावे पे आ जाए ... सत्य तो यह है तुम्हारे इस छात्र ने मेरी राज्य के कन्या को तुम्हारे धर्म के प्रति आकर्षित करने के लिए विबश किया '' ..
'' कृपा करके आप दोनों शांत हो जाईए ....
'' अनंत ने हाथ जोड़ कर दोनों से यह अनुरोध की .. कौशाम्बी प्रस्तर न्याय खड़ी थी ... दोनों ही इस अनभिप्रेत घटना से अत्यंत अप्रस्तुत हो गए थे ..
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अनंत ने दोनों से कहा '' मेरा ऐसा कोई अभिप्राय नही था .. यह कन्या भगवन तथागत के पूजा रीति सीखना चाह रही थी ... हमारे भगवन की पूजा करना कोई पाप नही है ... मैंने उसके इच्छा की पूर्ति हेतु उसे केवल पूजा रीति सिखाई ''
प्रधानाचार्य शीलभद्र के आँखों से अग्नि निष्काषित हो रहे थे .. अनेक कष्ट से उन्होंने क्रोध को प्रसमित करते हुए अनंत से कहा '' इसी क्षण यहाँ से चलो ... यह मेरा आदेश है ''
अनंत मस्तक नीचे किये महाबिहार की ओढ़ प्रस्थान किये .. उसके पश्चात बिहार के अन्य आचार्य गमन किये ..
कौशाम्बी मुर्तिप्राय खड़ी थी .. राजा मांडू ने इशारा किया अपने दो योद्धा से अतः वोह दो योद्धा कौशाम्बी को बलपूर्वक बाल खीचते हुए बन के ओढ़ ले गए ...
सूर्य अस्तगामी थे .. चारो ओढ़ अंधकार छा रहा था .. अनंत बिहार के छद पर अकेला बैठा था .. आकाश के अंधकार अनंत को उतना विचलित नही कर रहा था जितना यह सोचकर चिंतित हो रहा था अनंत के आकाश के अंधकार को तो सूर्य देव दूर करते है .. कल फिर उजाला होगी .. परन्तु मनुष्य मन की अंधकार को कौन दूर करेंगे ! जो अंधकार धर्म और जातिभेद से जर्जरित है .. कब होगी मनुष्य मन से यह धर्म का अंधकार दूर !
प्रधानाचार्य ने अनंत को महाबिहार से जाने की आदेश दिए है .. कल से इस महाबिहार की दार अनंत के लिए सदा के लिए बंध हो जायेंगे .. अनंत अपना माता की आदेश पालन ना कर सका ... इसका जितना खेद है उससे भी अधिक वेदना अनंत को पीड़ा दे रहे है के वोह इस बिहार से धर्म निरपक्षता की शिक्षा नही ले पाया ... जो स्वं धर्म के अंधकार में डूबे हो वोह बिहार कैसे धर्म निरपेक्षता की ध्वजा स्थापित करेगा ! एक कन्या को उसकी इच्छा हेतु उसके भगवन को पूजा की अधिकार नही दिला सका ! .... और चिंता शक्ति अवशेष नही रहा अनंत में .. उसने अपना मुख हाथों से ढक लिया ...
'' आचार्य '' ... किसने बुलाया अनंत को ! मुखमंडल से हाथ हटाकर उठ खड़ा हुआ , यह तो कौशाम्बी की आवाज़ थी .. भूल तो नही सुना अनंत ने !! .. उसने छद के प्रकार से नीचे की ओढ़ देखा ..
भूल नही थी ! कौशाम्बी पागलो की तरह बिहार की ओढ़ दौड़ कर आ रही थी .. अनंत सिड़ी से नीचे आ कर बिहार प्रांगन की ओढ़ पोहुचा ..
यह किस अवस्था में है कौशाम्बी ! उसके बाल बिखरे हुए .. गाल से आंसू टपकते हुए .. ठीक से ब्यक्त नही कर पा रही थी अपने आपको ... अनंत को देखते ही सामने गिड़ पड़ी .. अनंत से उसे पकड़ लिया ..
'' क्या हुआ कौशाम्बी बताओ ? ''
कौशाम्बी बिउहल होके कहा '' मार दिया आचार्य ''
'' किसने मार दिया कौशाम्बी ?
''
अनंत को आस्चर्य करके अचानक हस उठी कौशाम्बी .. अतःपर अपने होठ पे ऊँगली रख कर कहा '' चुप चुप .. धीरे बोलिए आचार्य , नही तो वोह आपकी और मेरी भी हत्या कर देंगे .. जैसे मेरे पिता माता की कर दिया ... मेरे आँखों के सामने उन दोनों को जला दी ''
... यह कहकर उच्च ध्वनि से हसने लगी ...
'' हे प्रभु ... यह कैसी विराम्बाना है ! '' अनंत चीख उठा ... अपने आँखों के सामने हत्या की यह निष्ठुरता सहन ना कर पाई यह बालिका और अपनी मानसिक स्थिति खो चुकी ...
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अतःपर अनंत ने देखा बन की ओढ़ से कही मशाल प्रज्वलित बिहार की ओढ़ आ रहे है ... अनंत समझ गया भील राज मांडू अपने अनुचरों के साथ आ रहे है ... अनंत ने कौशाम्बी को उठाकर बिहार के भीतर आया और उसे भगवन तथागत के प्रार्थनास्थल के सामने बिठा दिया ... उसके पश्चात तुरंत जा कर बिहार के दार बांध कर दिया ... कौशाम्बी अनिमेश नेत्र से भगवन बुद्ध के मूर्ति को देख रही थी ....
अनंत भगवन के सामने हाथ जोड़ कर कहा '' प्रभु यह आपकी पूजा हेतु आई थी ... इसके जीवन के यह परिणीती क्यूँ ! आज आपको विचार करना है .. धर्म और सत्य में से आप किसके पक्ष लेंगे ! .... इस कन्या की रक्षा कीजिए ''
बाहर से जोर आवाज़ आई ... बिहार के दार मानो कोई तोड़ने में उद्यत हो रहा हो ... देखते देखे महाबिहार के सभी अध्यक्ष सहित छात्राए वहा सम्मिलित हो गए ... प्रधानाचार्य शीलभद्र समझ गए क्या अन्यथा हो गयी ! .. अनंत एक नारी को बिहार लाकर इस स्थान को अपवित्र कर चुके है .. उपरांत यह भील जाती विद्रोही हो चुके .. उन्होंने अनंत को आदेश दिया इसी समय इस कन्या की त्याग करे और उसे भील जाती को सौप दे ... अनंत ने कोई उत्तर नही दिया ...
अतः प्रधानाचार्य के आदेश पर बिहार की दार खोल दिया गया ... अनंत के सामने आकर भील रजा मांडू को कहा '' अगर हत्या करना है तो मेरी हत्या कीजिये ... इस प्राण की कोई मूल्य नही है अब .. जो नश्वर देह किसी मनुष्य की इच्छा की पूर्ति ना कर पाए , उसके धर्माचरण में बाधादान करे जो धर्म मुझे वोह स्वीकार नही ... शेष कर दीजिये मेरी यह प्राण '' ...
अनंत कौशाम्बी के सामने था .. अनंत के एक ओढ़ बिहार के अध्यक्ष और छात्राए मूर्तिवत खड़े थे .. और उसके विपरीत ओढ़ भील प्रजागन ... उनके सामने मांडू राज हाथ में तलवार लिए ... सब अनंत के बात सुन रहे थे ...
अचानक पीछे से कौशाम्बी दौरकर सामने आए और मांडू राज के हाथ से तलवार छीन कर अपने वक्ष में विद्ध कर दिया ...
'' कौशाम्बी , यह क्या किया तुमने !!! '' ... अनंत कौशाम्बी को अलिंगन करके उसके वक्ष से तलवार निकल दिया ...
सब आश्चर्यचकित हो उठे .. किसीने इसकी अपेक्षा नही की थी .. स्वं भील राज मांडू भी नही .. वोह आए अवश्य थे प्रतिशोध लेने के लिए परन्तु कौशाम्बी उनके प्रिय थी ... आचार्य शीलभद्र के आँखों में प्रथम बार अश्रु दिखे सब ... वह उपस्थित सभी इस घटना से अत्यंत ब्यथित हो गए .. आचार्य शीलभद्र ने वैद को बुलाने की आदेश दी ..
परन्तु देर हो चुकी थी .. भगवन तथागत के मूर्ति सम्मुख एक साधारण भक्तिमयी भील बालिका एक निष्ठावान बौद्ध सन्यासी के आलिंगन में अपनी जीवन की शेष सांस ली .... अनंत के हाथ पर कौशाम्बी के आंख से एक बिंदु अश्रु टपक पड़ी ... देखते देखते अनंत का पीत वस्त्र लाल लहू से रंजित हो गया ......
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भोर चार प्रहर .. अंधकार स्तिमित होने लगा .. प्रातः की प्रथम ओस एक नूतन दिन की सुचना को प्रस्तुत है .. नालंदा महाबिहार की गतिविधिया आज अन्य दिन से भिन्न है .. आज बुद्ध पूर्णिमा है .. भगवन तथागत के आबीर्भाव दिवस .. इसी दिन महात्मा गौतम बुद्ध ने कपिलवस्तु में जन्म लिए थे .. आज नालंदा बिहार में उत्सव के वातावरण है .. प्रत्येक बौद्ध धर्मावलम्बी के लिए यह दिन विशेष रूप से चिन्हित है ... पुरे वर्ष इस दिन के लिए प्रतीक्षा करते है वे ....
बिहार के प्रांगन खुला है .. अभी कुछ ही समय पश्चात विशेष प्रार्थना संगीत आरंभ होगा ... भगवन तथागत के मूर्ति विशेष रूप से सजाये गए है ... पुष्प , फलाहार और दीयों से प्रज्वलित किया गया है समस्त प्रार्थनास्थल
... उसमे से एक दिया जो सबसे अधिक चमक रहे थे और उसे भगवन के मूर्ति के एकदम सामने रखा गया ....
इस दिये की एक विशेषता है .. यह वोही दिया है जो एक भील कन्या ने आज से तीस वर्ष पूर्व एक बौद्ध सन्यासी को गुरु दक्षिणा स्वरुप प्रदान किया था ... उसके पश्चात समय की धारा अपने गति से अतिवाहित होने लगे ... इस बिहार में भी कुछ परिवर्तन हुए ...
उस दिन जब एक भील कन्या ने अपनी प्राण की बली चढ़ाई भगवन तथागत के सम्मुख तब उसके सम्प्रदाय के भील राजा इस बिहार के प्रधानाचार्य के पेढ़ पढ़े उनसे और उनके शिष्य से क्षमा मांगे थे ... अपने पश्चाताप से द्वग्ध थे वोह ... शांति याचना कर रहे थे .. उस समय और भी एक व्यक्ति थे जो भील राजा के साथ पश्चाताप की ग्लानी सहन कर रहे थे .. वोह थे इस महाबिहार के परम ज्ञानी प्रधानाचार्य .. इन दोनों के हट और जिद की मूल्य एक निष्पाप कन्या को अपने प्राण देकर चुकाना पड़ा ... दोनों को इस ग्लानी से मुक्ति का रास्ता तब एक शिष्य ने बताया ... जिसके वस्त्र उस कन्या के लहू से रंजित था .. उस सन्यासी ने एक ही वाक्य उच्चारण की
'' बुद्ध्यानाम शरणम ममः ''
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प्रातः प्रार्थना के पूर्व प्रांगन स्थल जन समारोह से भर उठा ... क्यूँ ना हो ! प्रांगन के एक ओढ़ समस्त बौद्ध छात्राए सहित आचार्यगन और इनके साथ समग्र भील जाती के प्रजा सहित स्वं राजपरिवार इस पूजा में सम्मिलित हुए है ... केवल आज ही नही पिछले तीस वर्ष में से कोई भी दिन बिहार के दार बंध नही रहते .... प्रतिदिन प्रातः और संध्या के प्रार्थना में बिहार के सदस्य के संग भील प्रजा भी एकत्रित होते है ... वोह जो भेट लाते है भगवन के चरणों में चढ़ाने हेतु वोह मूर्ति स्थल के सम्मुख रखी जाती है ... प्रत्येक का यहाँ समानाधिकार है ... बिहार में उच्च-नीच के कोई भेद नही है .... आज भी इसके अन्यथा नही हुए है ...
प्रार्थना समय उपस्थित है ... अभी प्रधानाचार्य आयेंगे और उनके प्रतिनिधित्व में भगवन तथागत की जन्मतिथि के विशेष आरती प्रारंभ होगी .... सब प्रतीक्षा कर रहे है उनके आने की ..
अधिक प्रतीक्षा नही करनी पड़ी किसीको ... प्रधानाचार्य की काया बिहार के अलिंद के सम्मुख प्रतीत हुए ... पीत वस्त्र परिहित वोह सौम्य शांत मूर्ति धीर कदम से भगवन तथागत के सम्मुख आए ...
सब ही भक्तिपूर्वक उन्हें प्रणाम किया .. उन्होंने हाथ उठाकर सबको आशीर्वाद दिए ... अतः वोह भगवन के मूर्ति के सामने रखे अनेक दिये में से सबसे प्रज्वलित दिया उठाकर प्रार्थना आरंभ किये .. समग्र बिहार एक साथ गुंग उठे -
'' बुद्धं शरणं गछ्यामी
धर्मं शरणं गछ्यामी
संघं शरणं गछ्यामी ''
दिये को प्रभु के चारो ओढ़ घुमाकर वंदना करते समय प्रधानाचार्य कुछ समय के लिए अतीत के स्मरण में चले गए ....
एकदिन एक भील कन्या ने यह दिया रख कर कहा था '' आपकी गुरु दक्षिणा आचार्य '' ... आज वोह नही है .. परन्तु उसकी प्रतिभू स्वरुप आज समस्त भील संप्रदाय यहाँ इस उपासना में उपस्थित है ...
प्रधानाचार्य के दो आँख अश्रुपूर्ण हो उठे ... भगवन की मूर्ति उनके सामने अस्पष्ट हो रहे थे ... आरती करते करते दूर वनस्थल उनके दृष्टि केन्द्रित हुए ... जहां तीस वर्ष पूर्व एक बालिका पुष्प हाथ में लिए अपेक्षा करती थी अपने गुरु , अपने आचार्य के पद पर निछावर हेतु ....
आज भी उस सरल , विनम्र भील कन्या की अपेक्षा करते है प्रधानाचार्य अनंत ....
ह्रदय मोथित कर के प्रधानाचार्य अनंत ने आवाज़ दी -
'' कौशाम्बी !
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