Friday, May 25, 2012

एक लड़की एक नए शहर में

वैसे तो जब कुछ लिखने की सोचती हूँ तो दिमाग में बोहत से बातें आती है की क्या छोड़ कर क्या लिखू ! लेकिन जब कलम हाथ में लेती हूँ तो पहले दिमाग चुप , और एक या दो लाइन लड़खड़ाते हुए लिखने के बाद कलम के  भी चुप होने की  नौबत आ जाते है ....

मेरी इस  Article के  title से लग रहा होगा मैं कोई नई शहर के बारे में नई कहानी लिखने वाली हूँ . पर सच तो यह है मुझे अभी तक नही पता के क्या लिखने वाली हूँ , या फिर लिखने के बाद वोह पढने लायेक रहेगा भी या नहीं ! चलिए शुरुआत करने की कोशिश करती हूँ ....


एक शहर और उसके कुछ ऐसी बातें जो सिर्फ   history या geography के किताब में सीमित नहीं है , जिस शहर की कहानी में एक नयापन हो ... अब ऐसा शहर और ऐसी एक कहानी कहाँ से लाऊँ ! ऐसा नही के मैंने पहले कोई नया शहर नही देखा ! या फिर  मैं कोई नई शहर में  घुमने नही गयी  !

सच कहूं , जब भी मैं कहीं घुमने जाती हूँ तो अपने बैग में जगह हो या  ना  हो एक बड़ा सा diary ज़रूर लेती हूँ ताकि जहाँ जा रही हूँ वहा के सारे ख़ूबसूरत यादें  लिख पाऊँ . पर अफ़सोस हर बार मेरी diary के खाली पन्ने मेरे साथ सैर करके वापस आ जाते है . ऐसा नही है के मुझे समय नहीं मिलती थी या लिखने की इच्छा नही होती थी या अछि यादें समेटने के लिए नहीं होते थे ! सब मजूद रहते थे पर कैसे लिखू और क्या लिखू इसी सवाल में अटकी रहती थी ....

अब ऐसा एक शहर जिसके कितने रंग , कितनी कहानी . कोई छोटी  सी गली जब बड़े रास्तें से मिलते है बिलकुल उसी तरह शहर में रहने वाले या आने वाले सब अपने अपने मंजिल की ओढ़ छोटे छोटे कदम बढ़ाते है . उनमे से कितने अपनी मंजिल ढून्ढ पाते है या कितने वापस लौट जाते है यह हिसाब मेरे पास नही है , बस लोगों के भगा-दौड़ी से पता चलता है शहर की रफ़्तार चल रहे है ....


यहाँ भीड़ में भी कभी कभी तनहा लगता है , तो कभी तन्हाई से पीछा छुड़ाने के लिए भीड़ में मिल जाते है . शोर ज्यादा है यहाँ पर अब तो इसी की आदत  डालनी पड़ेगी . सुबह से दोपहर , फिर शाम , उसके बाद रात , और रात से फिर सुबह तक के सफ़र में यह शहर कितने करवटें बदलते है ! फिर भी यहाँ के लोग शिकायत करते है -  "कुछ नही बदलने वाला , क्या होगा इस शहर का !" . हाँ , अब तो यह शहर ही जाने आगे क्या होगा !

मैं किसी एक शहर की बात नही कर रही हूँ . लगभग हर शहर की येही दास्तान है  . अगर ऐसा सोचा जाए  ऐसी ही किसी एक शहर में पहली बार कोई लड़की जब पहला कदम रखे और कोशिश करे उस शहर और उसके ज़िन्दगानी के साथ खुद की ताल-मेल बिठाने की तो !

नहीं उसमे कोई  नई बात नही है . कितने शहर है जहाँ कितनी  सारी  लड़कियां पहली बार आती है और येही की होकर रह जाती है . फिर धीरे धीरे येही नया शहर उसकी पुराने दोस्त जैसे बन जाते है .

नयापन तो तब होगा जब उस नए शहर में  कोई नया साथी मिल जाए .  कोई अजनबी की तरह या कोई बिन बुलाए मेहमान की तरह जिसके आने की उम्मीद नही था लेकिन ना जाने कहाँ से आ गया ! फिर कब वोह साथी दोस्त , हमराही , हमदर्द , अछे दोस्त , बोहत अछे दोस्त या फिर सिर्फ दोस्त बन जाए ! अगर वोही वजह बन जाए उस नए शहर में रहने की ! 


वोह दोस्त जो शहर की भीड़ में जब वोह लड़की उलझ जाए तो हाथ पकडके उसे भीड़ से रास्ता निकलकर ले जाए . वो दोस्त जो अकेलेपन दूर करने के लिए चाय पीने में साथ दे . वो दोस्त जो पास ना  होकर भी ख़ास लगे . बारिश की बूंदे जब गालो को छू जाए तो एहसास हो उस दोस्त को भी तो बारिश पसंद है !  और फिर बरसात में पकोड़े और समोसे खाने का स्वाद ही उसके साथ दुगना हो जाए .... 

सुबह आँख खुलते ही पहला ख्याल आए आज कब फ़ोन करेगा वोह ! फ़ोन करेगा ना ! और दोपहर होने से पहले ही जनाब के जब  फ़ोन आ जाए मन कहे 'इसे कहते है इंतज़ार का फल मीठा होता है' , फिर अचानक याद आ जाए 'कहाँ इंतज़ार करवाया ! कल रात को ही तो फ़ोन किया था !'. 

उसके बारे में सोचकर   बिना वजह कहीं भी हंसी आ जाए , तो कभी भी कोई बहाना बनाकर उस दोस्त से बात करने को मन चाहे . उसके नापसंद में भी अपनी  पसंद मिलाने की कोशिश करती जाए यह लड़की . उसके साथ लहरों की पानी में पेढ़ भिगोने का मज़ा ही कुछ और आए .

हां  एक और अजीब बात , अब उसकी   diary का पन्ना खाली नही रहती ,  क्योकि उस लड़की को अपने यादो  का पता मिल गई है ....


तो यह थी एक लड़की की नए शहर की कहानी . अब यह सच  है या सपना ! पर एक बात तो तय है के इस नए शहर में एक लड़की को जिस नएपन की तलाश थी वो येही है और कहीं  नही .........    
   

















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